गलती सिर्फ इतनी सी थी की शादी से पहले माँ बन गयी
नाम – कोमल। उम्र – 23 साल।
बी.कॉम की छात्रा थी, भोपाल में
पढ़ाई करती थी। साधारण परिवार से थी – पापा किसान थे, माँ गृहिणी। कोमल अपने सपनों की उड़ान भरना
चाहती थी – नौकरी करना, माँ-बाप को
कुछ बनकर दिखाना।
उसी कॉलेज में मिला रोशन – स्मार्ट, पढ़ा-लिखा, बातों में
मीठा और सपनों में रौशनी जैसा लड़का। कोमल को उसकी बातें भाने लगीं। रोशन ने
धीरे-धीरे उसे अपना बना लिया। कहता —
"तुम्हारे बिना
तो मैं अधूरा हूँ… एक दिन तुम
मेरी पत्नी बनोगी।"
वो शब्द कोमल को पूरे जीवन की सुरक्षा जैसे लगते थे।
सालभर तक रिश्ता चला, फिर एक दिन रोशन
ने कहा —
"अगर मुझसे
प्यार है, तो ये दुनिया
की रीतें क्यों आड़े आएं? हम तो
एक-दूसरे के हो ही चुके हैं…"
कोमल थोड़ी हिचकी, पर प्रेम में
आँखें बंद थीं।
उसने खुद को सौंप दिया — पूरी निष्ठा, पूरे विश्वास
से।
कुछ ही महीने बाद…
शरीर ने संकेत देने शुरू किए।
जब जाँच करवाई… तो रिपोर्ट ने
सब कुछ बदल दिया।
कोमल गर्भवती थी।
वो डर गई, काँप उठी।
पर भरोसा था — " रोशन तो है, वो तो मुझसे
शादी करेगा ही…"
जब उसने रोशन को बताया, तो कुछ देर वो चुप रहा…
फिर बोला —
"तुम्हें कैसे
भरोसा है कि ये बच्चा मेरा ही है?"
कोमल की आँखें भर आईं —
" रोशन … मैंने सिर्फ़
तुमसे प्रेम किया है।"
पर रोशन ने कहा —
"देखो, मैं शादी नहीं
कर सकता। अभी करियर बनाना है, और समाज में बदनामी होगी। गर्भ गिरवा लो।"
"गर्भ गिरवा लो…" — ये तीन शब्दों
ने कोमल की आत्मा को चीर दिया।
जिसने वादा किया था सात जन्मों का,
वो अब नाम भी नहीं लेना चाहता था उस बच्चे का।
कोमल ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। माँ-बाप को नहीं बताया, बस रोती रही।
लेकिन फिर उसने एक फैसला किया —
"मैंने गलती की
है, तो उसका सामना
भी मैं ही करूंगी।"
वो डॉक्टर के पास गई, लेकिन गर्भपात
नहीं करवाया।
उसने उस बच्चे को जन्म देने का फैसला किया।
उसने पढ़ाई छोड़ी, किराये के
छोटे कमरे में काम करना शुरू किया।
दिन में जूस की दुकान पर नौकरी, रात को कपड़े सिलना।
वो माँ बनी — बिना पिता के
नाम के, लेकिन
आत्म-सम्मान के साथ।
आज उसका बेटा 3 साल का है।
वो खुद एक NGO चलाती है — उन लड़कियों
के लिए जो प्रेम में धोखा खाकर टूट जाती हैं।
जब भी कोई पूछता है —
"बिना शादी के
माँ बनना आसान था?"
वो कहती है —
"नहीं, लेकिन उस
बच्चे की साँसें मेरे अंदर थीं… कैसे मार देती उसे किसी और की गलती के लिए?"
सीख:
कभी प्रेम में खुद को इतना मत बहा दो कि जब बाढ़ थमे, तो तुम खुद को
ही न पहचानो।
और अगर गलती हो भी जाए, तो डटकर खड़ी हो जाओ — क्योंकि समाज सिर्फ़ बातें करेगा, लेकिन तुम्हारी हिम्मत तुम्हें फिर से जीना
सिखाएगी।
शीर्षक:
"शादी से पहले
बनी माँ… और जब उसने
अपना नाम लेने से भी इनकार किया, तब मैंने खुद को माँ के नाम से जीना सीख लिया"
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क्योंकि एक लड़की की हिम्मत, उसकी सबसे बड़ी पहचान होती है — न कि उसका
बीता हुआ अतीत।