फेरे से पहले जब सरपंच की बेटी भाग गई…
गांव का नाम था सुल्तानपुर एक ऐसा गांव
जहाँ आज भी इज़्ज़त सबसे बड़ी दौलत मानी जाती थी। और इस इज़्ज़त का
सबसे बड़ा रखवाला था गांव का सरपंच, धर्मपाल सिंह चौधरी।
धर्मपाल सिंह गांव के
सबसे पुराने, सबसे
प्रतिष्ठित और सबसे सख्त सोच वाले आदमी माने जाते थे। लोगों में उनका डर भी था और
सम्मान भी। उनकी एक ही संतान थी सुषमा, जो शहर से पढ़-लिखकर लौटी थी। तेज़, समझदार, और बहुत ही
सुंदर थी।
शहर में पढ़ने के दौरान सुषमा की सोच थोड़ी आधुनिक हो गई थी। लेकिन धर्मपाल सिंह ने कभी उसकी बातों को अहमियत नहीं दी। वो मानते थे
बेटियाँ जितना चुप रहें, उतना घर की इज़्ज़त बनी रहती है।
जब सुषमा की उम्र शादी की हो गई, तो उन्होंने
बिना सुषमा से पूछे गांव के ही अनुपलाल सिंह के बेटे रोशन से उसकी शादी तय कर दी।
रोशन पढ़ा-लिखा था, लेकिन उसमें
घमंड था। उसकी बातें सुषमा को कभी पसंद
नहीं आईं पर वो कुछ कह नहीं सकी।
शादी का दिन आया…
गांव सज गया था, चारों ओर
बैंड-बाजा गूंज रहा था।
धर्मपाल सिंह ने पूरे
गांव को दावत दी थी आखिर सरपंच की
बेटी की शादी थी!
रोशन घोड़ी पर
चढ़ा, बारात आई, मंडप सजा।
पंडित जी बोले
अब कन्या को मंडप में बुलाइए।
लेकिन सुषमा अपने कमरे में नहीं थी।
शुरू में सबने सोचा कि शायद तैयार हो रही होगी।
लेकिन जब आधे घंटे बीत गए, तो घर में हड़कंप मच गया।
कमरे की तलाशी ली गई… और वहां मिला एक चिट्ठी का टुकड़ा।
सुषमा ने लिखा था
पापा, आप मुझे समझने
की कोशिश ही नहीं करते।
मैंने अपनी ज़िंदगी का फैसला पहले ही कर लिया था
मैं सुमन से प्यार करती हूँ। वो ड्राइवर का बेटा है, लेकिन इंसान
अच्छा है।
मैं उसी से शादी कर रही हूँ। मुझे माफ़ करिए, पर मैं आपकी कठपुतली नहीं बन सकती।
चिट्ठी पढ़ते ही धर्मपाल सिंह चौधरी
के हाथ कांपने लगे।
सारी उम्र जो दूसरों की बेटियों की शादी तय करता रहा… आज खुद की
बेटी मंडप से भाग गई थी।
लड़के वाले गुस्से में थे
हमें धोखा
दिया गया! ये हमारी बेइज़्ज़ती है। हम पंचायत में शिकायत करेंगे।
गांव वाले सन्न थे।
हर किसी की नज़र सिर्फ धर्मपाल सिंह पर थी।
लेकिन फिर…
रणवीर सिंह चौधरी धीरे-धीरे मंच पर चढ़े।
उन्होंने माइक उठाया, पगड़ी उतारी, और कहा
मेरी बेटी ने जो किया, वो मेरी सोच के लिए एक तमाचा है।
मैंने उसे पढ़ाया, लेकिन कभी
उसकी आवाज़ नहीं सुनी।
मैं उसे इज़्ज़त देना भूल गया, क्योंकि मैं समाज की इज़्ज़त बचाने में लगा
रहा।
अगर आज वो भागी है, तो गलती उसकी
नहीं, मेरी है।
सन्नाटा छा गया।
उन्होंने आगे कहा
अगर समाज की इज़्ज़त इतनी खोखली है कि एक लड़की की पसंद से हिल जाती है,
तो उस समाज को बदलना ज़रूरी है बेटी को नहीं।
मैं सरपंच पद से इस्तीफा देता हूँ,
क्योंकि जो खुद अपने घर में न्याय न कर सका, वो गांव का क्या करेगा?”
धर्मपाल सिंह चौधरी ने
सिर झुकाया और मंच से उतर गए।
लोगों की आँखों में शर्म थी… लेकिन कुछ की आँखों में आंसू भी।
आज…
सुषमा सुमन के साथ शहर
में है एक छोटी सी
नौकरी करती है।
धर्मपाल सिंह चौधरी गांव
में अब अकेले रहते हैं, लेकिन हर
हफ्ते बेटी का फोन आता है
और वो सिर्फ़ एक शब्द कहते हैं
खुश रहो बेटी… अब तुझ पर
गर्व है।
बेटियों को सिर्फ़ पढ़ाओ मत उन्हें सुनो
भी।
जिस समाज की इज़्ज़त बेटियों के फैसलों से गिर जाती है, वो समाज नहीं
भीड़ होता है।
प्यार अगर सच्चा हो, तो जात, घर, समाज सब छोटा
लगता है।
बेटियों को आज़ादी दीजिए क्योंकि वो इज़्ज़त तो होती ही हैं, पर जीने का
हक़ भी रखती हैं।
गलती सिर्फ इतनी सी थी की शादी से पहले माँ बन गयी