आखिर सुख किसको है
बहुत ही रोचक और हृदय मै ज्ञान उत्पन्न करने वाली कहानी
एक भिखारी किसी किसान के घर भीख माँगने गया। किसान की स्त्री घर में थी, उसने चने की
रोटी बना रखी थी। किसान जब घर
आया,उसने अपने
बच्चों का मुख चूमा,स्त्री ने
उनके हाथ पैर धुलाये,उसके बाद वह
रोटी खाने बैठ गया।स्त्री ने एक मुट्ठी चना भिखारी को डाल दिया,भिखारी चना
लेकर चल दिया।
रास्ते में भिखारी सोचने लगा हमारा भी कोई जीवन है? दिन भर कुत्ते की तरह माँगते फिरते हैं। फिर स्वयं बनाना पड़ता है। इस
किसान को देखो कैसा सुन्दर घर है। घर में स्त्री हैं, बच्चे हैं, अपने आप अन्न
पैदा करता है। बच्चों के साथ प्रेम से भोजन करता है। वास्तव में सुखी तो यह किसान
है।
इधर वह किसान रोटी खाते-खाते अपनी स्त्री से कहने लगा नीला बैल बहुत बुड्ढा हो गया है अब वह किसी तरह काम नहीं देता, यदि कही से कुछ रुपयों का इन्तजाम हो जाये तो इस साल का काम चले।
रामोतार महाजन के पास जाऊँगा वह ब्याज पर दे देगा। भोजन करके वह रामोतार महाजन के पास गया। बहुत देर चिरौरी बिनती करने पर 1.5 रु. सैकड़ा
सूद पर रामोतार ने रुपये देना स्वीकार किया। एक लोहे की
तिजोरी में से रामोतार ने एक थैली निकाली। और गिनकर रुपये किसान को
दे दिये।
रुपये लेकर किसान अपने घर को चला, वह रास्ते में सोचने लगा हम भी कोई आदमी हैं, घर में 5 रु. भी नकद नहीं। कितनी चिरौरी विनती करने पर उसने रुपये दिये है।
रामोतार कितना धनी है उस पर सैकड़ों
रुपये है वास्तव में
सुखी तो यह रामोतार महाजन ही है। रामोतार छोटी सी दुकान करता था, वह एक बड़ी
दुकान से कपड़े ले आता था। और उसे बेचता था।
दूसरे दिन रामोतार कपड़े लेने गया, वहाँ सेठ मलीचन्द की दुकान से कपड़ा लिया। वह वहाँ बैठा ही था, कि इतनी देर में कई तार आए कोई बम्बई का था। कोई कलकत्ते का, किसी में लिखा था 5 लाख मुनाफा हुआ
किसी में एक लाख का। रामोतार महाजन यह सब देखता रहा, कपड़ा लेकर वह चला आया। रास्ते में सोचने लगा हम भी कोई आदमी हैं, सौ दो सौ जुड़ गये महाजन कहलाने लगे। मलीचन्द कैसे हैं, एक दिन में लाखों का फायदा वास्तव में सुखी तो यह है, उधर मलीचन्द बैठा ही था, कि इतने ही में तार आया कि 5 लाख का घाटा हुआ।
वह बड़ी चिन्ता में था, कि नौकर ने
कहा आज लाट साहब की रासबिहारी सेठ के यहाँ
दावत है। आपको जाना है मोटर तैयार
है। मलीचन्द मोटर पर चढ़ कर रासबिहारी की कोठी पर
चला गया। वहाँ सोने चाँदी की कुर्सियाँ पड़ी थी, रासबिहारी जी से
कलक्टर-कमिश्नर हाथ मिला रहे थे। बड़े-बड़े सेठ खड़े थे। वहाँ मलीचन्द सेठ को कौन पूछता, वे भी एक
कुर्सी पर जाकर बैठ गया। लाट साहब आये, रासबिहारी से हाथ मिलाया, उनके साथ चाय पी और चले गये।
मलीचन्द अपनी मोटर
में लौट रहें थे, रास्ते में
सोचते आते है, हम भी कोई सेठ
है 5 लाख के घाटे
से ही घबड़ा गये। रासबिहारी का कैसा ठाठ है, लाट साहब उनसे हाथ मिलाते हैं। वास्तव में
सुखी तो ये ही है।
अब इधर लाट साहब के चले जाने पर रासबिहारी के सिर में दर्द हो गया, बड़े-बड़े डॉक्टर आये एक कमरे वे पड़े थे। कई तार घाटे के एक साथ आ गये थे। उनकी भी चिन्ता थी, कारोबार की भी बात याद आ गई।
वे चिन्ता में पड़े थे, तभी खिड़की से उन्होंने झाँक कर नीचे देखा, एक भिखारी हाथ
में एक डंडा लिये अपनी मस्ती में जा रहा था। राय बहदुर ने उसे देखा और बोले वास्तव
में तो सुखी यही है, इसे न तो घाटे
की चिन्ता न मुनाफे की फिक्र, इसे लाट साहब को पार्टी भी नहीं देनी पड़ती सुखी तो यही है।
शिक्षा
इस कहानी से हमें यह पता चलता है, कि हम एक दूसरे को सुखी समझते हैं। पर वास्तव
में सुखी कौन है, इसे तो वही
जानता है। जिसे आन्तरिक शान्ति है। जिसे आन्तरिक सुकून है, आप चाहे
भिखारी हो चाहे करोड़पति हो। लेकिन आप के मन में जब तक शांति नहीं है तब तक आपको
सुकून नहीं मिल सकता।