मेरे घर में नौकरानी नहीं आएगी

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 मेरे घर में नौकरानी नहीं आएगी

मेरे घर में नौकरानी नहीं आएगी


 मम्मी जी घर में कम से कम बर्तन धोने वाली तो लगा लीजिए। या फिर आप लोग खाना डिस्पोजल में खाना शुरू कर दीजिए

बहू ने कहा।

हमारे घर में कोई नौकरानी नहीं आएगी। तुम बहू हो, ये काम तुम्हारा है। और शर्म नहीं आती डिस्पोजल में खाना खाने के लिए बोलते हुए

सासू मां ने अपनी आवाज ऊंची करते हुए कहा।

इतनी तेज आवाज सुनकर एक बार तो बहू की हवा टाइट हो गई। पर फिर हिम्मत करके बोली,

मम्मी जी मैं भी इंसान हूं। दिन भर इतना काम करते-करते थक जाती हूं। रात को घर आती हूं तो सुबह से शाम तक के बर्तन मुझे सफ़ करने होते है

बहू ने कहा।

भाभी क्या आप मम्मी से बात किए जा रही हो। आपको शुरू से ही पता था ना कि घर में नौकरानी नहीं है। फिर जॉब करने की क्या जरूरत थी। और वैसे भी जो काम बहू का है वह बहू को ही करना पड़ेगा। उसके लिए कोई और नहीं आएगा"

ननद मनीषा बीच में ही बोली।

पर अपने इस्तेमाल किए हुए बर्तन तो आप साथ के साथ धोकर रख सकते हो ना

 अब तू चाहती है कि हम लोग अपने बर्तन खुद धोए। इस घर में कोई नौकरानी नहीं आएगी। कह दिया हमने

कहकर मनीषा ने बात को वही खत्म कर दिया।

आज ऑफिस में बहुत जरूरी मीटिंग थी। बहू को आते-आते रात के नौ बज गए। पक्का कंफर्म था कि उसे डांट पड़ने वाली थी। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था। वो थक हार कर घर में घुसी ही थी कि देखा तो मम्मी जी और पापा जी टीवी देख रहे थे।

ब्रजेश अपना लैपटॉप लिए बैठे कुछ काम कर रहे थे। ननद मनीषा फोन पर अपनी सहेलियों से बतिया रही थी। देख कर लगा सब कुछ नॉर्मल है।

वो चुपचाप अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो मम्मी जी ने उसे घूर कर देखा। उनसे नजर मिलते ही उसकी नजरें नीचे झुक गई। बस लेट आई थी, पर ऐसा लगा जैसे बहुत बड़ा गुनाह करके आई हो। उसे डर लग रहा था कि कही बम अभी ना फूट जाए। वो चुपचाप नीचे नजरे कर अपने कमरे में चली गई। उसने फटाफट कपड़े बदले, हाथ मुंह धोये और कमरे से निकल कर रसोई की तरफ जाने लगी।

ब्रजेश की नजर उसकी तरफ थी। उसने इशारे इशारे में कह दिया कि उन्होने खाना खा लिया है। एक पल के लिए ये जानकर बहू को बड़ी खुशी हुई कि चलो आज तो खाना तैयार है। नहीं तो पिछली बार तो उसका इंतजार करते-करते ही दस बज गए थे।

दस भाषण सुने थे वो अलग। कितना सुनाया था मम्मी जी ने,

तुम्हें जॉब करने की इजाजत तो तभी मिली थी कि तुम पहले घर का काम संभालोगी। लेकिन तुम्हारे तो अब पर ही निकल आए

उसने खाना बाहर से मंगवाने के लिए कहा तो दो लेक्चर और सुनने को मिले।

पैसा क्या कमाने लगी हो, अपने पैसों की धौंस जमाती हो। हम बाहर का नहीं खाते, खाना तो घर में ही बनेगा

फिर दस साढ़े दस बजे उसने आनन-फानन में सबके लिए रोटी सब्जी बनाई थी। उसमें भी दस मीन मेख निकाल दिए गए थे। मम्मी जी पापा जी खाना खाते जा रहे थे और उसे दस बातें सुनाए जा रहे थे। उसके बाद रात को झूठे बर्तन नहीं रखते। उन सबको धोते-धोते बारह बज ही गए थे। तब जाकर के उसको नींद नसीब हुई थी।

पर आज खाना बन भी गया और उसे कोई बात सुनाई भी नहीं गई। वो मन ही मन खुश होते हुए रसोई में गई। रसोई में घुसते ही उसकी ये गलतफहमी दूर हो गई। खाना बना नहीं था बल्कि बाहर से मंगवाया गया था। पर उसके बावजूद भी जानबूझकर पूरी रसोई को फैला दिया गया था।

देखकर ही लग रहा था कि जिस किसी ने भी खाना खाने के बर्तन रसोई से निकाले हैं, उसके मन में जरूर ये चल रहा होगा कि आज बहू को करने के लिए कुछ भी नहीं है, तो क्यों ना रसोई ही फैला दी जाए। यहां तक कि जब खाना बर्तनों में परोसा गया था तो भी पहले उसे स्लैब को खिलाया गया था, बाद में बर्तन में पहुंचाया होगा।

पर जब उसकी नजर सिंक की तरफ गई तो झूठे बर्तन देखकर रुलाई फूट गई। इतने सारे बर्तन?

ऐसा नहीं है कि वो कामचोर है। पर क्या करें? सुबह घर से निकलती है, तब जो बर्तन धोकर रखकर जाती है, वो भी आने के बाद गंदे ही मिलते हैं। दिन भर घर में कुछ ना कुछ सब खाते पीते रहते हैं, पर बर्तनों को धोना कोई पसंद नहीं करता।

और काम वाली बाई कोई रख ले, ऐसा हो नहीं सकता। क्या है ना कि बहू को आने के बाद सबको आदत हो जाती है नए-नए धर्म निभाने की।

दोपहर के खाने के बर्तन तक उसे मुंह चिढ़ा रहे थे। यहां तक की मम्मी जी पापा जी ने सुबह नाश्ता किया होगा, वो बर्तन भी वहां पड़े पड़े उसी का इंतजार कर रहे थे। कहां तो उसे बहुत जोर से भूख लग रही थी और कहां इन बर्तनों को देखकर अपने आप ही उसकी भूख भी मर गई। उसके बाद ही उसने बाहर आकर बात की थी तो इतनी बहस हो गई।

सबसे पहले रसोई की सफाई की और झूठे बर्तन धोकर रखें। उसके बाद बिना खाना खाए ही अपने कमरे में आकर लेट गई।

क्या हुआ? खाना क्यों नहीं खाया तुमने?

आशीष ने पूछा।

भूख मर चुकी है मेरी अब। इंसान हूं मशीन नहीं। आखिर इतना काम कैसे करूं? पता नहीं इस घर के लोग समझते क्यों नहीं

बहू ने कहा।

तो एक काम करो। कुछ दिन नौकरी छोड़ दो

ब्रजेश ने कहा।

ब्रजेश के कहने पर बहू  ने कुछ दिन की छुट्टी ले ली। और घर पर सबको कह दिया कि बहू  ने नौकरी छोड़ दी है। उसके नौकरी छोड़ने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। उल्टा सब लोग खुश हो गए।

दो दिन बाद ब्रजेश  के पापा मम्मी कहीं बाहर जा रहे थे। तब उसके पापा ने ब्रजेश  से चाबी मांगी।

पापा मैं कार नहीं दे सकता। अभी थोड़ी देर में कंपनी से लोग आ रहे हैं कार वापस लेने के लिए

क्यों? कार वापस लेने क्यों आ रहे हैं?

अचानक मनीषा  ने कहा।

 अब मम्मी मैं भी क्या कर सकता हूं? जितनी मेरी सैलरी है उस हिसाब से मैं कार अफोर्ड नहीं कर सकता। अब बहू  तो नौकरी छोड़ चुकी है तो बाकी के सारे खर्चे मुझे ही देखने हैं। ऊपर से मनीषा  की शादी के लिए भी मुझे ही पैसे बचाने हैं। पापा की पेंशन से तो आपकी दवाईयां और छोटे मोटे सामान आ जाते है। इसलिए मैंने कार वापस ले जाने को कहा है। आप लोग बस या ऑटो से चले जाइए

सुनकर मनीषा और उनके पति एक दूसरे की शक्ल देखते रह गए। इधर कुछ घंटे बाद ब्रजेश  ने अपने दो दोस्तों के जरिए कार उसके घर पहुंचा दी।

दूसरे दिन घर की डोर बेल बजी। मनीषा  ने जाकर दरवाजा खोला तो सामने डिलीवरी बॉय था। मनीषा  वापस ब्रजेश  के पास आई और बोली,

 भैया मुझे जरा पंद्रह सौ रूपए देना। मैंने एक ड्रेस मंगवाया था तो उसका पेमेंट करना है

सुनकर ब्रजेश  बोला,

मनीषा  मंगवाने से पहले पूछती तो सही। इतनी सारी ड्रेस है तो सही तेरे पास। फिर अलग से ड्रेस मंगवाने की क्या जरूरत पड़ गई थी

सुनकर मनीषा  हैरानी से ब्रजेश  की तरफ देखने लगी,

भैया पहले तो कभी मना नहीं किया। अब क्या हो गया?

बहन पहले मैं अकेला नहीं कमा रहा था। दो लोग कमा रहे थे

ब्रजेश  ने कहा।

अरे तो बहू के नौकरी न करने से क्या बिल्कुल गरीबी के दिन आ गए हैं, जो एक ही बात बोलता रहता है। अरे हमने भी घर चलाया है। तुम दोनों बच्चों को पाला है। लेकिन तेरे जैसी हालत तो कभी नहीं हुई। जबकि तेरी तो सैलरी भी अच्छी है

मनीषा  ने बिगड़ते हुए कहा।

 सही कहा मम्मी। आपने भी घर चलाया है लेकिन कभी ऐसी स्थिति नहीं हुई। क्योंकि तब जिंदगी किस्तों पर नहीं बीतती थी। आप ही सोचो। हमारे पास सुविधा कम थी पर तो सुकून था। लेकिन अब सुविधा है। कार, मनीषा  की स्कूटी, यहां तक कि टीवी और फ्रिज सब लोन पर उठाए है। पेट्रोल का खर्चा बढ़ गया। बिजली का खर्चा बढ़ गया। ऊपर से हर महीने बंधी बंधाई किस्त जाती है। आखिर अकेला कमाने वाला इंसान कितना करेगा

ब्रजेश  बोले जा रहा था और सब चुपचाप सुने जा रहे थे।

एक तीन हजार रूपए की बर्तन धोने वाली लगाने के चक्कर में आपने जो पैसा घर में आ रहा था उसको भी रोक दिया। अगर बहू परिवार को परिवार समझ कर खर्च कर रही है तो आपको भी तो बहू को परिवार का हिस्सा समझकर काम में मदद कर देनी चाहिए। अब बहु काम नहीं कर सकती तो थोड़ा एडजस्टमेंट आपको भी करना पड़ेगा

ब्रजेश  ने कहा तो सब लोग चुप हो गए। आखिर फिर मनीषा ने खुद बहू  को नौकरी करने की इजाजत दे दी। साथ ही साफ सफाई और बर्तन धोने वाली भी लगा ली। अब सब अपना अपना काम खुद करते थे। यहां तक कि मनीषा जी भी बहू के आने से पहले-पहले सब्जी वगैरह साफ करके रख देती थी।

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